चुराई गयी डायरी का पन्ना-१

हमें नहीं मालूम और न कभी हमने जानने की कोशिश ही की। अपन तो दस-बीस लाइक और आठ-दस कॉमेंट में ही मस्त रहने वाले आदमी हैं। गुरुग्राम वाली दीदी से लेकर भोपाल वाली बड़की दीदी, उज्जैन वाले जैन साहब, जयपुर वाले शर्मा जी और अधिक हो गया तो दो चार अंकल/आंटी तक सीमित है अपनी दुनिया। हमें इस बात का भी इल्म तक नहीं है कि हमारी हरकतों से समाज और साहित्य को क्या नफा-नुकसान हो रहा। ठीक इसी तरह दस-बीस लोगों का हमारा अपना व्हाट्सएप साहित्यक ग्रुप है। हम आपस में ही लिखते हैं और वाह-वाह करते हैं। भोपाल और नॉएडा के कुछ कद्रदान हैं जो हमारे लिखे को वेब पत्रिकाओं में छाप लेते हैं। फिर अगले दिन हम उसी स्क्रीन शॉट पर फिर से बधाई-बधाई और धन्यवाद खेलने में मस्त रहते हैं। यह हमारी रोज की दिनचर्या है।

Hayat Singh (हयात सिंह)
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