स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहले से कहीं आसान पहुँच के चलते हमने भी एक आई डी बना ली फेसबुक में। उनके ऑफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद घर के सारे काम-धाम खत्म करके ही हमें चलाने का मौका मिलता है। टेक्निकली हम इतने स्ट्रांग भी नहीं। साहित्य और समाज को हमसे अधिक उम्मीद नहीं पालनी चाहिये। साड़ी/बिंदी की तारीफ का शौक है और यह इतना बुरा भी नहीं। हमें हमारी रियल लाइफ में शायद ही कभी कॉम्प्लिमेंट मिलता हो किसी बात के लिये। परस्पर दीदी, जीजी के बाद कुछ गंभीर सोचने का जैसे ही मन होता है। या कहिये मन बनाते हैं। समय नहीं बचता। बच्चे स्कूल से वापस आ जाते हैं। और भी कई काम निकल आते हैं। इस तरह यह हमारी रोज की दिनचर्या बन जाती है।
हयात सिंह (Hayat Singh)
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