चुराई गयी डायरी का पन्ना-३

हम भी हैं फेसबुक में। अरे भई हम इलेक्ट्रिशियन, प्लम्बर, कारपेंटर, रिक्शे वाले भैया वगैरा-वगैरा। स्विच, ट्यूबलाइट, पंखा, गीज़र, हीटर से लेकर वाश बेसिन के आगे-पीछे चक्कर लगाने के दौरान ही बीच-बीच में कर लेते हैं ऑपरेट फेसबुक/व्हाट्सएप। आलतू-फालतू को लाइक/कॉमेंट/शेयर करने के दौरान ही कभी-कभी दिल तो करता है मगर क्या करें कभी कोई नोटिस ही नहीं करता। अपन लोगों के पास इत्ता दिमाग नहीं और न ही इतना धैर्य। अपन खुश है आलतू-फालतू में। साहित्य और समाज वाले क्या जानें? कबीर के दोहे और तुलसीदास की चौपाई यू-ट्यूब में सुन लेते हैं हम भी। रोजमर्रा के दौरान जब कोई सभ्य बाबू जी और मेडम बेवजह अंग्रेजी में किच-पिच करते हैं तो हम मन ही मन गाना गुनगुनाते हैं- अपनी तो जैसे-तैसे कट जायेगी, आपका क्या होगा, जनाबे आली। इस तरह यह हमारी रोज की दिनचर्या और आदत बन गयी।

हयात सिंह (Hayat Singh)
+91-9560-716-916

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