चुराई गयी डायरी का पन्ना-४

फेसबुक से पहले हम ब्लॉग पर थे, ब्लॉग से पहले हम पत्र-पत्रिकाओं में थे। समाज और साहित्य पर लिखने-पढ़ने का हमारा कॉपीराइट ही था, समझो। अरे आप हमें नहीं जानते। हम हैं जी हम, पत्रकार, प्रोफेसर, डॉक्टर वगैरा। इस मुये फेसबुक पर भी हमारी ही विरादरी के लोगों का पहला कदम पड़ा था। मगर विडम्बना देखिये कि इसकी सर्वसुलभता ने फेसबुक में एक भारी भीड़ खड़ी कर दी, कविता-कहानी लिखने वालों की। और तो और ये नये लोग हमसे कहीं अधिक लाइक/कॉमेंट्स भी पाने लगे। लेकिन हमारे अपने तर्क हैं, लाइक/कॉमेंट्स से होता क्या है? समाज और साहित्य तो अब भी हम ही समझते हैं और सबसे बेहतर समझते हैं। फेसबुक की इस भारी भीड़ में अनदेखा किये जाने के बाद भी हमारी दखलन्दाजी काबिलेतारीफ है। धरातल से दूर, कागज़ों से शुरू हुई यह दिनचर्या फेसबुक में भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।

हयात सिंह ( Hayat Singh)
+91-9560-716-916

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